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वास्तु कराने का क्या लाभ है

4-1-2021 Blog

वास्तु कराने का क्या लाभ है .

वास्तु कराने का क्या लाभ है

 

जब कोई भवन बनवाया जाता है या आप जिस भवन में रह रहे हैं हमारी यही राय होती हे कि निर्मित हो चुके भवन अथवा नया भवन बनवा रहे हैं तो उसका वास्तु अवश्य करायें। आज इस पोस्ट के माध्यम से हम जानेंगे कि वास्तु क्यों आवश्यक है उससे मनुष्य को क्या फायदा मिलता है और वास्तु शास्त्र है क्या।

 

वैसे तो वास्तु शास्त्र के उदभव की एक लम्बी कहानी है, हम इस पोस्ट में संक्षिप्त रूप से वास्तु शास्त्र के उद्भव के बारे में बात करेंगे। यहाँ पर यह कहानी बताते हुये काफी सारे तथ्यों को छोड़ दिया गया है। साधारण शब्दों में रहन-सहन व किसी भी प्रकार की गतिविधि अथवा वस्तुओं को सही और व्यवस्थित तरीके सही दिशा क्षेत्र में बनाकर रखना वास्तु शास्त्र कहलाता है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में भगवान शिव के पसीने की बूँद से एक विशाल मानव वास्तु पुरूष का जन्म हुआ जिसने सभी लोकों पर कब्जा करना शुरू कर दिया जिससे देवता और राक्षस दोनों ही भयभीत हो गये। फिर ब्रह्मा जी के कथनानुसार देवताओं और राक्षसों ने उस मानव को जमीन पर उल्टे मुंह गिरा दिया और उसको उपर बैठ गये। जो भी देव और राक्षस उस मानव के उपर विराजमान हुये वह उन देवताओं व असुरों की जगह कहलाई, देवता व असुरों की यही स्थिति प्रत्येक भवन में होती है जिसके अनुसार मनुष्य को उनका ध्यान रखकर भवन में प्रत्येक गतिविधि को ध्यान रखना होता है अन्यथा भवन निवासी को वास्तु पुरूष के दण्ड का भागी बनना पड़ता है।

 

वास्तु कराना क्यों आवश्यक है और इससे क्या लाभ होते हैं-
प्रत्येक देवता/असुरों की स्थिति भवन में कहाँ-कहाँ हैं, उनके क्या प्रभाव हैं इसका ध्यान भवन निवासी को करना होता है एवम् उनकी स्थिति के अनुसार भवन की गतिविधि का संचालन करना होता है। किस देवता अथवा असुर की क्या गतिविधि है उनकी स्थिति / दिशा क्षेत्र कौन से हैं इन सबके बारे में एक वास्तु शास्त्री ही बता सकता है। इसलिये भवन निर्माण होने से पूर्ण अथवा भवन निर्माण के बाद भी वास्तु परामर्श लेकर भवन को वास्तु सन्तुलन में रखना चाहिये।

वास्तु कराने से क्या लाभ हैं-
जिस भवन में आप रहते हैं यदि वहाँ का वास्तु यदि असन्तुलन में है तो निश्चित रूप से आपके उपर उसका दुष्प्रभाव रहता है।

मनुष्य के जीवन में दो प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा काम करती है एक तो मनुष्य की खुद की और उसके आस-पास की ऊर्जा। मनुष्य के आस-पास की ऊर्जा यदि सकारात्मक होती है वह अपने कार्यों को तेजी से पूरा कर पाता है (चाहे वह कार्य व्यापारिक हों या व्यक्तिगत) और अगर मनुष्य के आस-पास नकारात्मक ऊर्जा है तो वह अपने कार्यों को बहुत देरी से पूरा कर पाता है।

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जिस तरह से बर्फ के टुकड़े को गर्मी में रखने से वह पिघल जाता है और ठन्डे वातावरण में रखने पर वह अपनी स्थिति में बना रहता है, यहाँ पर बर्फ के लिये गर्म वातावरण नकारात्मक ऊर्जा और ठन्डा वातावरण सकारात्मक ऊर्जा का कार्य करता है। इसलिये यह आपको तय करना है कि आपको किस तरह की ऊर्जा अपने आस-पास चाहिये सकारात्मक या नकारात्मक।
 

अपने आस-पास यानि जहाँ आप निवास करते हैं और जहाँ आप कार्य करते हैं। वास्तु शास्त्र क्या करता है जैसा कि ऊपर बताया गया है कि प्रत्येक भवन में देवता और असुर के दिशा क्षेत्र होते हैं, तो कौन से दिशा क्षेत्र किस कार्य के लिये उपयुक्त यह वास्तु में बताया जाता है और किस देवता या असुर के अनुकूल क्या रंग या वस्तुयें यह सब बताया और ध्यान रखा जाता है जिस प्रकार आपको आस-पास सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है और मनुष्य को अपने कार्यों में सदगति मिलती है। वास्तु सम्बन्धी किसी भी अन्य जानकारी के लिये कमेन्ट बाक्स में पोस्ट करें।

 

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