आज्ञा चक्र जोकि भौहों के मध्य स्थित होता है, जगत को देखना इसकी क्रिया होती है। और यह छठी इन्द्री कहलाता है। इसकी गंध पुदीना, वनीला व चमेली जैसी होती है। चाँदी इस चक्र की अनुकूल धातु होती है। कल्पना करना ही इसकी शक्ति बनती है।
मानव शरीर के ग्रीवा, धमनियां, कनपटी व माथे से यह सम्बद्व होता है। निष्क्रिय आक्रामक रूख रहना, भय, झगड़ा करना, व्यर्थ की चिन्ता करना व दुःस्वप्न देखना इसके असंतुलन के लक्षण होते हैं।
राजयोग ध्यान, नील ब्रह्माण्डीय रंग का मानसिक चित्रण करना, एनलाइटिंग न्यूरोबिक्स, त्रि-आयामी छवियों पर ध्यान केन्द्रि करने से यह संतुलन में आ जाता है। इसके अतिरिक्त इसके लिये दैनिक अभ्यास भी किया जा सकता है- दोनों हाथों को जोरों से रगड़ें और उन्हें अपनी आंखों पर रखें। महसूस करें कि ईश्वर आप पर नीले रंग की किरणों की वर्षा कर रहे हैं।
तीसरे नेत्र चक्र में बाधा के कारण शरीर में उत्पन्न रोगः सिर में व आंखों में दर्द होना, स्नायु तंत्र की अव्यवस्था, माइग्रेन का दौरा इत्यादि।
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