हृदय चक्रः हृदय चक्र प्रेम भावना पर समर्पित होता है और इसका प्राथमिक गुण प्रेम ही होता है। इस चक्र के परस्पर कार्य करने हेतू मानव को निःस्वार्थ संसार के अन्य व्यक्तियों के प्रति प्रेम भावना रखनी चाहिये।
हृदय चक्र का गौण गुणः मन का संतुलन, शरीर का आरोग्य, प्रकृति से संपर्क, आंतरिक सामंजस्य आदि ही इस चक्र का गौण है।
जब मानव में निम्नलिखित धारणायें आ जाती हैं तब यह चक्र बंद हो जाता है-
1. लोभ
2. क्रोध
3. जलन
इस चक्र में बाधा देने वाला प्राथमिक दुर्गुण लोभ होता है व गौण दुर्गुण क्रोध व ईष्र्या के रूप में सामने आता है।
नीचे दिये गये उपायों के द्वारा हृदय चक्र को पुनः खोला जा सकता है-
निःस्वार्थ प्रेमः प्रेम व स्नेह का निःस्वार्थ विस्तार करके इस चक्र को खोलने में सहायक होता है। दूसरों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने के लिये किये जाने वाले कृत्यों से ही यह बन्द होता है। अतः बिना किसी स्वार्थ के ही संसार के अन्य व्यक्तियों के प्रति प्रेम भावना बनानी चाहिये।
स्नेहः उन सभी लोगों की एक लिस्ट बनायें जो आपको पल भर में व्याकुल करने की शक्ति रखते हैं और आपको यह अहसास दिलाते हैं कि आप मानसिक रूप से उनके दास हैं। यह सजग प्रकटीकरण हमें स्वयं ही स्वतंत्र कर देगा।
सामाजिक सफलताः हम व्यक्तिगत सफलता के स्थान पर निरन्तर सामाजिक सफलता के लिए ही कार्य करते रहते हैं।
सजग अनुभूतिः हम उनकी एक छवि गढ़ लेते हैं और तदुपरान्त उसी प्रकार की छवि से स्वयं को परस्पर जोड़ते रहते हैं, जबकि मनुष्य एक निरंतर परिवर्तनशील प्राणी है, जो अपनी चेतना के बहुविध केन्द्र लिये होता है।
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