इस चक्र को तृतीय नेत्र भी कहा जाता है। यह चक्र दोनों भौंहौं के बीच में स्थित होता है।
अहम् को सन्तुलित करने में इस चक्र का अहम् स्थान होता है। यह अहम् को सन्तुलित कर अंतस्थ मार्गदर्शन कराता है। बौद्धिक स्तर पर संतुलित होने के लिए इस चक्र का सक्रिय होना परम आवश्यक है। जिस व्यक्ति में यह चक्र सक्रिय हो जाता है वह व्यक्ति पूर्णरूपेण शांति प्राप्त कर स्थिरता ग्रहण कर लेता है।
ऐसा व्यक्ति जीवन की किसी भी परिस्थिति से प्रभावित नहीं होता है। ऐसा व्यक्ति ईश्वरीय भक्ति में लीन हो जाता है और यह चक्र व्यक्ति के लिये स्वर्ग का द्वार खोल देता है।
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