वायव्य यानि कि उत्तर-पश्चिम दिशा, इस दिशा पर चंद्र ग्रह का अधिकार बताया जाता है एवम् पवन देव का वास होता है। व्यक्ति के मन का प्रतिनिधित्व चंद्रमा के द्वारा होता है। वायव्य में भूमि बढ़ी होने से चंद्रमा की कारक निम्न वस्तुओं में वृद्धि होती है-
ऐसे भूखंड पर बने मकान में रहने वालों को माता का उत्तम सुख मिलता रहता है। यहां रहने वाले लोग भ्रमणशील होते हैं। वे अपने मन के अनुसार अथवा कार्यों के कारण बार-बार अपने आवास बदलते हैं और अलग-अलग शहरों में भ्रमण करते हैं।
चंद्रमा के नौकरी के साथ संबंध रहते हैं इसलिये इन्हें अच्छी नौकरी मिलती है और परिवार के प्रायः सभी सदस्य घर के बाहर जाकर नौकरी करते हैं।
चंद्रमा जोकि औषधि के भी कारक होते हैं इसलिये इस तरह के भूखंड पर बने मकान में रहने वालों के धन-धान्य में वृद्धि होती है और इनके घर में खाद्य पदार्थों की नियमित व्यवस्था रहती है।
इसके अतिरिक्त परिवार के सदस्यों में आपसी मतभेद भी बना रहता है तथा गृहस्वामी के मन में उन्माद, उत्पात तथा चिंन्ता बनी रहती है। ऐसे मकान में रहने वाले लोग लग्नशील व कल्पना वाले होते हैं।
वायव्य क्षेत्र में वायु देवता का वास होता है। वायु का स्वभाव चंचल होता है। शरीर में वायु गुण के कारण चिन्ता, उन्माद एवं मानसिक दुर्बलता भी बनी रहती है। फलस्वरूप यहां रहने वाले प्राणियों के बाल असमय सफेद हो जाते हैं और बुढ़ापे के लक्षण भी शीघ्र ही दिखाई पड़ने लगते हैं।
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