वास्तु में सभी परिस्थितियों के लिये एक दिशा पहले से ही निर्धारित होती है, वास्तु अनुसार अनुकूल दिशाओं में गतिविधि करने से उक्त गतिविधि ज्यादा अच्छे से चलती है और उचित परिणाम आपको दे पाती है। इसलिये वास्तु के अनुसार गतिविधियाँ करने का स्थान भवन निर्माण के समय पहले से ही उचित दिशा में बना देना चाहिये। ऐसा करने से सकारात्मक ऊर्जायें मनुष्य को ऊर्जावान बनाती हैं।
जिस तरह हम बात करते हैं स्वास्थ्य की दिशा की, उत्तर-उत्तर-पूर्व दिशा स्वास्थ्य से जुड़ी होती है, जितनी भी स्वास्थ्य से जुड़ी गतिविधि हैं यदि इस दिशा में की जाती हैं तो वह सभी गतिविधि सकारात्मक परिणाम देती हैं, जैसे- दवाईयाँ रखने का स्थान, मालिश का स्थान, ध्यान करने का स्थान आदि गतिविधि इस दिशा में करनी चाहिये।
इसके साथ-साथ एक दूसरी बात का भी यहाँ ध्यान रखना आवश्यक है, गतिविधि अनुकूल दिशा में करने के साथ-साथ उस दिशा का वास्तु के अनुसार सन्तुलन में होना भी जरूरी है। जब तक दिशा सन्तुलन में नही तब तक आपको उसका पूरी तरह से फायदा नही मिल पायेगा।
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