मूलाधार चक्र - यह चक्र न केवल शरीर की हड्डियों एवं मांसपेशियां में ऊर्जा का संचार करता है, और साथ ही यह यौन केन्द्र का भी काम करता है। जितने भी रचनात्मक ऊर्जा एवं शक्ति होती हैं उनका स्रोत यही है।
हमारे अन्दर पुरूष एवं स्त्री दोनों ही तरह की विभिन्न ऊर्जा शक्तियां विद्यमान है। लेकिन हमारा समाज दोनों ऊर्जा को व्यक्त नहीं होने देता। ज्यादातर देखा गया है कि अधिकांश समाज स्त्री ऊर्जा शक्ति का दमन करते हैं।
हमारे शरीर का बायां भाग और मस्तिष्क का दायां भाग, स्त्री ऊर्जा का ही है, जो सौन्दर्य, शांति, काव्य और कला का स्थान होता है। सात वर्ष की आयु तक हमारे अन्तःकरण में दोनों ऊर्जा शक्तियां विद्यमान होती है। आपने गौर भी किया होगा कि इस उम्र के बच्चे अधिक सुन्दर होते हैं, यह सब इन्हीं ऊर्जाओं के कारण होता है।
लेकिन उसके बाद बच्चे अपने दूसरे पक्ष (स्त्री ऊर्जा) का दमन करने लगते हैं, जिससे उनका अन्तःकरण आहत होता है। वे बाहरी दुनिया में दूसरे हिस्से की तलाश करने लगते हैं। इसी कारण लड़कियां अपने पिता और लड़के अपनी माता के व्यक्तित्व से अधिक प्रभावित होते हैं।
7 और 14 साल की आयु तक यदि माता-पिता अधिकांश समय अपने बच्चों के साथ रहें तो बच्चों की अन्तरात्मा को घायल होने से बचाया जा सकता है। लेकिन जब माता-पिता उनके पास नहीं होते, तो वे व्यर्थ में स्त्री या पुरूष ऊर्जा को ढ़ूढते फिरते हैं।
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