यह चक्र नाभि से दो इंच नीचे स्थित होता है। इसी जगह पर डर या भय के आघात मनुष्य को होते हैं। एक औसत मनुष्य में 24 घंटों के समय अन्तराल में 6 से लेकर 12 तक भय के आघात लग सकते हैं। जोकि मनुष्य के सोते हुये या जागते हुये किसी भी स्थिति में लग सकते हैं।
इन भय के आघात के लगने से हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित होती है। जिसके फलस्वरूप निराशा, बीमारी, बुढ़ापा, बांझपन और नपुंकसकता जैसी दशाएं पैदा हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त इन आघात के द्वारा गुर्दे सम्बन्धित बीमारियां भी हो सकती हैं।
इस तरह के भय को मुख्यतया चार श्रेणियों में विभक्त किया गया है-
1. रोग या शारीरिक दुर्घटना का भय
2. समाज में अपना मान-सम्मान, सम्पत्ति या सुख-सुविधाओं के खोने का भय
3. मृत्यु का भय
4. परिवारजन या मित्र खोने का भय
यहां पर निर्भयता का अर्थ यह नहीं होता है कि इसमें भय नहीं होता, बल्कि इस स्थिति में व्यक्ति को भय का पूरा अनुभव होता है और इसका सामना करने का उसमें साहस होता है।
मनुष्य को यदि हम भय का भली प्रकार से अनुभव हो जाता है तो मनुष्य को होने वाला आघात उसे कभी गहरा आघात नहीं पहुंचा सकता है।
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