लाभ और प्राप्तियों के बारे में जब भी बात की जाती है तो आपके दिमाग में पश्चिम दिशा आनी चाहिये। यदि आप वास्तु कन्सल्टैन्ट हैं तो देवताओं के नाम भी आपको याद होने चाहिये। भवन में 16 दिशायें होती हैं और कुल मिलाकर 32 देवता इन दिशाओं में विद्यमान होते हैं। लाभ और प्राप्ति किसी भी रूप में अगर आप प्राप्त करना चाहते हैं तो आपके भवन की पश्चिम दिशा सन्तुलन में होनी चाहिये। यदि भवन की पश्चिम दिशा सन्तुलन मे है तो भवन निवासियों को लाभ और प्राप्ति मिलने में किसी प्रकार की कोई बाधा नही आती है, उन्हे समय पर लाभ और प्राप्ति मिलती रहती है।
लाभ और प्राप्ति का मतलब होता है किसी कार्य के बदले में प्राप्त होने वाली धनराशि। अर्थात् जब आप कोई कार्य करते हैं तो आपको उसके बदले में लाभ के रूप में एक निश्चित धनराशि प्राप्त होती है। यदि भवन की पश्चिम दिशा में किसी प्रकार वास्तु असन्तुलन है तो आपको लाभ के रूप में मिलने वाली धनराशि में विलम्ब हो सकता है।
आपको काम के बदले मिलने वाली धनराशि में विलम्ब न हो इसके लिये आपको भवन की पश्चिम दिशा में वास्तु का सन्तुलन बनाये रखना चाहिये। पश्चिम दिशा के स्वामी शनि देव होते हैं और देवता वरूण और वायु देव होते हैं। इस दिशा का अनुकूल रंग काला, सफेद व ग्रे होता है यानि कि इस दिशा की दीवारों पर काला, सफेद व ग्रे अथवा सिल्वर कलर करवाया जाना उचित होता है, इनसे अतिरिक्त रंग इस दिशा के लिये प्रतिकूल होते हैं अतः अन्य किसी रंग का इस्तेमाल यहाँ वास्तु शास्त्र अनुसार वर्जित माना गया है। यदि आप किसी तरह का कोई सजावट का सामान इस दिशा में लगाना चाहते हैं तो उसका रंग भी इनमें से ही कोई होना चाहिये इनसे अलग नहीं।
यहाँ का अनुकूल तत्व लोहा और शेप गोल आकार की होती है। इस दिशा में कोई भी कार्य कराना हो तो आप इन बातों का ध्यान अवश्य रखें तो आप इस दिशा से मनचाहे लाभ ले पायेंगे।
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