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पिता पुत्र में अच्छे सम्बन्ध के लिये वास्तु टिप

14-9-21 Blog

पिता पुत्र में अच्छे सम्बन्ध के लिये वास्तु टिप .

पिता पुत्र में अच्छे सम्बन्ध के लिये वास्तु टिप

 

वास्तु शास्त्र एक ऐसी प्रथा है जिसके अनुसार व्यक्ति के जीवन की सम्भावित समस्याओं का समाधान दैवीय शक्ति की मदद से सहज ही हो जाता है। वास्तु शास्त्र दैवीय शक्तियों द्वारा बनाई गई वह प्रणाली है जिसका प्राचीन काल से उपयोग होता आ रहा है। सदी के मध्यान्ह में लोगों ने वास्तु का अनुसरण करना छोड़ दिया था परन्तु वास्तु के अनुसार न चलने के कारण जब मानव जीवन में समस्यायें उत्पन्न होने लगीं तब फिर से वास्तु महा वास्तु शास्त्र फिर से प्रचलन में आने लगा। यह तो सभी को ज्ञात है कि यह सृष्टि दैवीय शक्तियों द्वारा रचाई गई है और उन्ही के नियन्त्रण में यह सृष्टि चल रही है।

सनातनी धर्म का पालन करने वाले सभी परिवारों में प्रतिदिन देवताओं पूजा द्वारा आह्वान करके उनका आर्शीवाद प्राप्त किया जाता है जिसको दैवीय सकारात्मक ऊर्जा भी कहते हैं। परन्तु दैवीय शक्तियों से प्रोन्नति हेतू मिलने वाली सकारात्मक ऊर्जायें का पूर्ण स्वरूप तब ही मानव को मिल पाता है जब मनुष्य द्वारा निर्मित भवन जिसमें वह निवास करता है वह वास्तु अनुरूप हो। 
    
प्रतिदिन मनुष्य जब भोजन ग्रहण करता है तो वह सब्जी को किसी कटोरी में व रोटी को प्लेट में रखकर ग्रहण करता है, परन्तु सब्जी को यदि प्लेट में परोसा जाये और रोटी को कटोरी में तो यह असहज होगा। रोटी कटोरी सही से आयेगी नही और सब्जी पूरी प्लेट में फैली रहेगी, जिस कारण मनुष्य को भोजन ग्रहण करने में असुविधा का सामना करना पड़ेगा वह सही तरह से भोजन ग्रहण ही नही कर पायेगा और प्रसन्नता का भाव तो उसमें रह ही नही पायेगा। यह व्यवस्था पूर्णतया असुविधाजनक एवम् असन्तोषजनक हो जायेगी और यदि इस व्यवस्था के अनुरूप भोजन ग्रहण भी कर लिया जाता है तो वह मानव शरीर को अच्छी पौष्टिक ऊर्जा नही दे पायेगा, क्योंकि वह भोजन ग्रहण करते समय अव्यवस्था के कारण उसका स्वभाव चिडचिड़ा बना रहेगा। इसलिये भोजन से अच्छी ऊर्जा प्राप्त हो इसके लिये भोजन को प्रसन्न भाव से ग्रहण करना आवश्यक है।

बिल्कुल इसी तरह से दैनिक जीवन में सकारात्मक दैवीय ऊर्जायें मनुष्य को प्राप्त होती रहें उसके लिये मनुष्य को उस दैवीय शक्तियों द्वारा बनाये गये उस सिद्धान्त का पालन करना होता है जिनको दैवीय शक्तियों द्वारा बनाया गया, इस प्रणाली को वास्तु शास्त्र कहा जाता है।

किसी भी भवन में वास्तु शास्त्र असन्तुलन में होने से जहाँ दैवीय ऊर्जाओं का साथ नही मिल पाता है वहीं अनेक समस्यायें भी मनुष्य के परिवार में आ जाती हैं। कई परिवारों में यह देखा गया है कि व्यापार में तरक्की नही या फिर पारिवारिक सदस्यों में बैर है, ऐसा भी वास्तु असन्तुलन के कारण होता है। परिवार में पिता के साथ बेटों की बात नही बनती है इस तरह की समस्या अक्सर देखी जाती है।

परिवार में पिता के साथ बेटों की आवाज एक रहे इसके लिये पिता को अपना शयनकक्ष कभी भी पूर्व दक्षिण पूर्व व दक्षिण दक्षिण पश्चिम दिशा में नही बनवाना चाहिये बल्कि किसी का भी शयनकक्ष इस दिशा में नही होना चाहिये। परिवार के सदस्यों का कोई भी चित्र इन दिशाओं में नही होना चाहिये। इन दिशाओं में किसी भी सदस्य का चित्र लगाने से वे किसी भी विषय पर जरूरत से ज्यादा विचार करते हैं और संयुक्त रूप से लगाये गये फोटो से उन सदस्यों के विचारों में मतभेद आना शुरू हो जाता है।

दक्षिण पश्चिम दिशा पारिवारिक रिश्तों से जुड़ी होती है, यह एक ऐसी दिशा है जिसमें सन्तुलन बनाये रखने से पारिवारिक सदस्यों के बीच बहुत अच्छा सामंजस्य बना रहता है। इस दिशा के देवता मृग होते हैं इनकी सकारात्मक ऊर्जा मिलने से पारिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम बना रहता है। इस दिशा का अनुकूल रंग पीला होता है यानि इस दिशा में दीवारों का सजावटी सामान का या अन्य कोई भी सामान जो यहाँ रखा जाना है वह पीले रंग का होना चाहिये। अन्य किसी रंग का प्रयोग करने पर वह वास्तु दोष ला सकता है।

इसके अतिरिक्त परिवार के सभी सदस्यों का प्रसन्न मुद्रा में एक फोटो इस दिशा में अवश्य लगाना चाहिये जिसके फ्रेम का रंग पीला या गोल्डन होना चाहिये। यह वास्तु टिप अपनाकर परिवार के सदस्यों में प्रेम भावना बनाई जा सकती है। वास्तु से जुड़ी अन्य किसी जानकारी के लिये कमेन्ट बाक्स में पोस्ट करें।

 

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